02-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बिन्दु का महत्त्व

ज्योतिबिन्दु, ज्ञान के सिन्धु शिवबाबा अपने ज्योतिबिन्दु आत्माओं प्रति बोले:-

आज भाग्यविधाता बाप सर्व भाग्यवान बच्चों से मिलने आये हैं। भाग्य विधाता बाप सभी बच्चों को भाग्य बनाने की अति सहज विधि बता रहे हैं। सिर्फ बिन्दु के हिसाब को जानो। बिन्दु का हिसाब सबसे सहज है। बिन्दु के महत्व को जाना और महान बने। सबसे सहज और महत्वशाली बिन्दु का हिसाब सभी अच्छी तरह से जान गये हो ना! बिन्दु कहना और बिन्दु बनना। बिन्दु बन बिन्दु बाप को याद करना है। बिन्दु थे और अब बिन्दु स्थिति में स्थित हो बिन्दु बाप समान बन मिलन मनाना है। यह मिलन मनाने का युग, उड़ती कला का युग कहा जाता है। ब्राह्मण जीवन है ही मिलने और मनाने के लिए। इसी विधि द्वारा सदा कर्म करते हुए कर्मों के बन्धन से मुक्त कर्मातीत स्थिति का अनुभव करते हो। कर्म के बन्धन में नहीं आते लेकिन सदा बाप के सर्व सम्बन्ध में रहते हो। करावनहार बाप निमित्त बनाए करा रहे हैं। तो स्वयं साक्षी बन गये। इसलिए इस सम्बन्ध की स्मृति बन्धन मुक्त बना देती है। जहाँ सम्बन्ध से करते वहाँ बन्धन नहीं होता। मैंने किया, यह सोचा तो सम्बन्ध भूला और बन्धन बना! संगमयुग बन्धमुक्त सर्व सम्बन्ध युक्त, जीवनमुक्त स्थिति के अनुभव का युग है। तो चेक करो सम्बन्ध में रहते हो या बन्धन में आते? सम्बन्ध में स्नेह के कारण प्राप्ति है, बन्धन में खींचातान, टेन्शन के कारण दु:ख और अशान्ति की हलचल है। इसलिए जब बाप ने ‘बिन्दु’ का सहज हिसाब सिखा दिया तो देह का बन्धन भी समाप्त हो गया। देह आपकी नहीं है। बाप को दे दिया तो बाप की हुई। जब आपका निजी बन्धन, मेरा शरीर या मेरी देह यह बन्धन समाप्त हुआ। मेरी देह कहेंगे क्या, आपका अधिकार है? दी हुई वस्तु पर आपका अधिकार कैसे हुआ? दे दी है वा रख ली है? कहना तेरा और मानना मेरा यह तो नहीं है ना! जब तेरा कहा तो मेरे-पन का बन्धन समाप्त हो गया। यह हद का मेरा, यही मोह का धागा है। धागा कहो, जंजीर कहो, रस्सी कहो, यह बन्धन में बांधता है। जब सब कुछ आपका है यह सम्बन्ध जोड़ लिया तो बन्धन समाप्त हो सम्बन्ध बन जाता है। किसी भी प्रकार का बन्धन चाहे देह का, स्वभाव का, संस्कार का, मन के झुकाव का यह बन्धन सिद्ध करता है बाप से सर्व सम्बन्ध की, सदा के सम्बन्ध की कमज़ोरी है। कई बच्चे सदा और सर्व सम्बन्ध में बन्धन मुक्त रहते। और कई बच्चे समय प्रमाण मतलब से सम्बन्ध जोड़ते हैं। इसलिए ब्राह्मण जीवन का अलौकिक रूहानी मजा पाने से वंचित रह जाते हैं। न स्वयं, स्वयं से सन्तुष्ट और न दूसरों से सन्तुष्टता का आशीर्वाद ले सकते। ब्राह्मण जीवन श्रेष्ठ सम्बन्धों का जीवन है ही - बाप और सर्व ब्राह्मण परिवार का आशीर्वाद लेने का जीवन। आशीर्वाद अर्थात् शुभ भावनायें, शुभ कामनायें। आप ब्राह्मणों का जन्म ही बापदादा की आशीर्वाद कहो, वरदान कहो इसी आधार से हुआ है। बाप ने कहा - आप भाग्यवान, श्रेष्ठ विशेष आत्मा हो। इसी स्मृति रूपी आशीर्वाद वा वरदान से शुभ भावना, शुभ कामना से आप ब्राह्मणों का नया जीवन, नया जन्म हुआ है। सदा आशीर्वाद लेते रहना। यही संगमयुग की विशेषता है! लेकिन इन सबका आधार - सर्व श्रेष्ठ सम्बन्ध है। सम्बन्ध मेरे-मेरे की जंजीरों को, बन्धन को सेकण्ड में समाप्त कर देता है। और सम्बन्ध का पहला स्वरूप वो ही सहज बात है बाप भी बिन्दु मैं भी बिन्दु और सर्व आत्मायें भी बिन्दु। तो बिन्दु का ही हिसाब हुआ ना। इसी बिन्दु में ज्ञान का सिन्धु समाया हुआ है। दुनिया के हिसाब में भी बिन्दु 10 को 100 बना देता और 100 को हजार बना देता है। बिन्दु बढ़ाते जाओ और संख्या बढ़ाते जाओ। तो महत्व किसका हुआ? बिन्दु का हुआ ना। ऐसे ब्राह्मण जीवन में सर्व प्राप्ति का आधार बिन्दु है।

अनपढ़ भी बिन्दु समझ सकते हैं ना! कोई कितना भी व्यस्त हो तन्दरूस्त न हो, बुद्धि कमज़ोर हो लेकिन बिन्दु का हिसाब सब जान सकते। मातायें भी हिसाब में तो होशियार होती हैं ना। तो बिन्दु का हिसाब सदा याद रहे! अच्छा-

सर्व स्थानों से अपने स्वीट होम में पहुँच गये। बापदादा भी सभी बच्चों को अपने भाग्य बनाने की मुबारक देते हैं। अपने घर में आये हैं। यही अपना घर दाता का घर है। अपना घर आत्मा और शरीर को आराम देने का घर है। आराम मिल रहा है ना! डबल प्राप्ति है। आराम भी मिलता, राम भी मिलता। तो डबल प्राप्ति हो गई ना! बाप के घर का बच्चे शृंगार हैं। बापदादा घर के शृंगार बच्चों को देख रहे हैं। अच्छा-

सदा सर्व सम्बन्ध द्वारा बन्धन मुक्त, कर्मातीत स्थिति का अनुभव करने वाले, सदा बिन्दु के महत्व को जान महान बनने वाले, सदा सर्व आत्माओं द्वारा सन्तुष्टता की शुभ भावना, शुभ कामना की आशीर्वाद लेने वाले, सर्व को ऐसी आशीर्वाद देने वाले, सदा स्वयं को साक्षी समझ निमित्त भाव से कर्म करने वाले, ऐसे सदा अलौकिक रूहानी मौज मनाने वाले, सदा मजे की जीवन में रहने वाले, बोझ को समाप्त करने वाले, ऐसे सदा भाग्यवान आत्माओं को भाग्य विधाता बाप की याद प्यार और नमस्ते।’’

दादियों से:- समय तीव्रगति से जा रहा है। जैसे समय तीव्रगति से चलता जा रहा है - ऐसे सर्व ब्राह्मण तीव्रगति से उड़ते हैं। इतने हल्के डबल लाइट बने हैं? अभी विशेष उड़ाने की सेवा है। ऐसे उड़ाती हो? किस विधि से सबको उड़ाना है? क्लास सुनते-सुनते क्लास कराने वाले बन गये। जो भी विषय आप शुरू करेंगे उसके पहले उस विषय की पाइंटस सबसे पास होंगी। तो कौन-सी विधि से उड़ाना है इसका प्लैन बनाया है? अभी विधि चाहिए हल्के बनाने की। यह बोझ ही नीचे ऊपर लाता है। किसको कोई बोझ है किसको कोई बोझ है। चाहे स्वयं के संस्कारों का बोझ, चाहे संगठन का... लेकिन बोझ उड़ने नहीं देगा। अभी कोई उड़ते भी हैं तो दूसरे के जोर से। लेकिन दूसरे के जोर से उड़ने वाले कितना समय उड़ेंगे? जैसे खिलौना होता है उसको उड़ाते हैं, फिर क्या होता? उड़कर नीचे आ जाता। उड़ता जरूर है लेकिन सदा नहीं उड़ता। अभी जब सर्व ब्राह्मण आत्मायें उड़ें तब और आत्माओं को उड़ाएं बाप के नज़दीक पहुँचा सकें। अभी तो उड़ाने के सिवाए, उड़ने के सिवाए और कोई विधि नहीं है। उड़ने की गति ही विधि है। कार्य कितना है और समय कितना है?

47 वर्ष में एक डेढ़ लाख ब्राह्मण हुए हैं। लेकिन कम से कम 9 लाख तो पहले चाहिए। ऐसे तो संख्या ज्यादा होगी लेकिन सारे विश्व पर राज्य करेंगे तो कम से कम 9 लाख तो हों। समय प्रमाण श्रेष्ठ विधि चाहिए। श्रेष्ठ विधि है ही उड़ाने की विधि। उसका प्लैन बनओ। छोटे-छोटे संगठन तैयार करो। कितने वर्ष अव्यक्त पार्ट को भी हो गया! साकार पालना, अव्यक्त पालना कितना समय बीत गया। अभी कुछ नवीनता करनी है ना। प्लैन बनाओ। 84 में कम से कम 84 का चक्र तो पूरा हो। उड़ने और नीचे आने का चक्र तो पूरा हो। 84 जन्म हैं, 84 का चक्र गाया हुआ है। 84 में जब यह चक्र पूरा होगा तब स्वदर्शन चक्र दूर से आत्माओं को समीप लायेगा। यादगार में क्या दिखाते हैं? एक जगह पर बैठे चक्र भेजा और वह स्वदर्शन चक्र स्वयं ही आत्माओं को समीप ले आया। स्वयं नहीं जाते। चक्र चलाते हैं। तो पहले यह चक्र पूरे हों तब तो स्वदर्शन चक्र चलें। तो अभी 84 में यह विधि अपनाओ जो सब हद के चक्र समाप्त हों ऐसे ही सोचा है ना। अच्छा-

टीचर्स से

टीचर्स तो हैं ही उड़ती कला वाली! निमित्त बना - यही उड़ती कला का साधन है। तो निमित्त बने हो अर्थात् ड्रामा अनुसार उड़ती कला का साधन मिला हुआ है। इसी विधि द्वारा सदा सिद्धि को पाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। निमित्त बनना ही लिफ्ट है। तो लिफ्ट द्वारा सेकण्ड में पहुँचने वाले उड़ती कला वाले हुए। चढ़ती कला वाले नहीं। हिलने वाले नहीं लेकिन हिलाने से बचाने वाले। आग की सेक में आने वाले नहीं लेकिन आग बुझाने वाले। तो निमित्त की विधि से सिद्धि को प्राप्त करो। टीचर्स का अर्थ ही है - ‘निमित्त भाव’। यह निमित्त भाव ही सर्व फल की प्राप्ति स्वत: कराता है। अच्छा-